Kalank Nivarini Ganesh Chaturthi katha - कलंक निवारण स्यमन्तक मणि कथा
Kalank Nivarini Syamantak Mani katha, seeing the moon on Ganesh Chaturthi leads to false allegations or stigma on the person. Read this Story For Solution
Kalank Nivarini Syamantak Mani katha, seeing the moon on Ganesh Chaturthi leads to false allegations or stigma on the person. Read this Story For Solution
Updated On: Thu, Nov 23, 2023 | Posted By: Pt. Balwan Singh | Comment
हिंदू शास्त्रों में गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखना अच्छा नहीं मानते। पौराणिक एक कथा के अनुसार चतुर्थी वाले दिन ही श्री गणेश जी ने चंद्रमा द्वारा उपहास करने पर श्राप दिया था जिससे चंद्रमा की चमक क्षीण हो गई थीं, कहा जाता है कि इस दिन चंद्र दर्शन से व्यक्ति पर झूठे आरोप या कलंक लगता है, इसलिए इस दिन चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए।
गलती से ही सही, यदि किसी ने गणेश चतुर्थी को चाँद देव के दर्शन कर लिए तो उसके उपाए के बारे में भी हमारे शास्त्रों में उल्लेख किया हुआ हैं। जिसके लिए आपको गणेश चतुर्थी कलंक निवारणी कथा (Kalank Nivaran Saiman mani Katha) पढ़कर या सुनकर उपाए किया जा सकता हैं।
एक बार की बात है, भगवान कृष्ण ने चतुर्थी के दिन गलती से चंद्रमा देख लिया था, तब उन पर भी चोरी का झूठा कलंक लगा था। कलंक निवारण उपाए के लिए स्यमन्तक मणि की कथा सुननी चाहिए।
स्यमंतक की कहानी विष्णु पुराण और भागवत पुराण में आती है। यह हीरा मूल रूप से सूर्य देवता का था, जो इसे अपने गले में पहनते थे। ऐसा कहा जाता था कि जिस भी भूमि पर यह रत्न होगा उस भूमि पर कभी भी सूखा, बाढ़, भूकंप या अकाल जैसी आपदाओं का सामना नहीं करना पड़ेगा और वह हमेशा समृद्धि और प्रचुरता से भरी रहेगी। रत्न जहां भी रहता था, वह रखवाले के लिए प्रतिदिन आठ भर सोना पैदा करता था। चूंकि एक औंस में चावल के लगभग 3,700 दाने होते हैं, स्यमंतक रत्न हर दिन लगभग 77 किलोग्राम स्वर्ण पैदा कर रहा था। यह सूर्य देव की तेजोमय उपस्थिति का स्रोत भी था।
भगवान श्रीकृष्ण की नगरी द्वारिका पुरी में सत्राजित ने सूर्य की उपासना से सूर्य के समान प्रकाशवाली और प्रतिदिन स्वर्ण देने वाली 'स्यमन्तक' मणि प्राप्त की थी। श्रीं कृष्ण ने मज़ाक में उनसे उस स्यमंतक मणि मांगी जिससे उसे संदेह हुआ कि श्रीकृष्ण इस मणि को पाना चाहते हैं उन्हें भी प्रतिदिन स्वर्ण देने वाली मणि चाहिए। इसका विचार करते हुए उसने वह 'स्यमन्तक' मणि अपने भाई प्रसेन को उपहार स्वरुप भेंट करदी।
एक दिन प्रसेन वन मे शिकार करने गया, उसी दौरान एक सिंह ने उसे अपना निवाला बना लिया। इस तरह वह 'स्यमन्तक' मणि उस सिंह के पास चली गई। सिंह से वह मणि ‘जामवंत' जी ने सिंह का पेट फाड़ कर निकाल ली।
सत्राजित के संदेह के कारण उसने श्रीकृष्ण पर यह कलंक लगा दिया कि 'स्यमन्तक' मणि के लोभ से उन्होंने प्रसेन को छल से मार डाला। यह बात जब श्रीं द्वारकानाथ को पता चली तो उन्होंने प्रण किया कैसे भी वह मणि लेकर आऊंगा या फिर वापस ही नहीं आऊंगा, जहाँ प्रसेन को सिंह ने खाया था वहाँ कुछ ही दुरी पर वह सिंह भी मरा पड़ा था और उसके घाव देख श्रीकृष्ण को पता चला कि वह मणि जामवंत भालू के पास है, तो वह जामवंत की गुफा में चले गए। उस मणि के लिए दोनों में 21 दिनों तक घोर युद्ध हुआ।
श्रीकृष्ण ने जामवंत जी को पराजित कर दिया। इससे जामवंत समझ गए श्रीं कोई और नहीं प्रभु श्रीं राम के ही अवतार हैं। इसके परिणाम स्वरूप नमन कर जामवंत ने श्रीकृष्ण को उपहार स्वरूप स्यमन्तक मणि देते हुए अपनी पुत्री जामवन्ती से विवाह का प्रस्ताव रखा। श्री कृष्ण जामवंती और स्यमन्तक मणि सहित द्वारिकनगरी वापस आये। यह देख कर सत्राजित ने वह मणि उन्हीं को अर्पण कर दी। इससे श्रीकृष्ण पर लगा कलंक दूर हो गया।
यदि आप पर भी मिथ्या आरोप या कलंक लगता है, श्रीं गणेश जी महाराज आपकी दुविधा कलंक दूर कर देंगे बस अपने और भगवन पर भरोसा रखें।