Sanjhi Festival - सांझी पर्व
Sanjhi Mata Fastival in India, Shradh Puja then the beginning of the Sanjhi festival, together with Navratri, then the Ramlila presentation, at the end the grand floats and on the day of Dussehra festival, Sanjha Devi is sent off.
सांझी पर्व (Sanjhi Festival) प्रमुख पर्व है जो भाद्रपद की पूर्णिमा से अश्विन मास की अमावस्या तक मनाया जाता है। इस समय भारत वर्ष में कई पर्व एक के बाद आते है और सब जगह रौनक व उत्साह छाया रहता है। पहले श्राद्ध पूजा, फिर सांझी पर्व की शुरूआत, साथ साथ मे नवरात्री, फिर रामलीला प्रस्तुति, अंत मे भव्य झांकियां और दशहरा पर्व के दिन ही (सोलह दिन के अंत मे अमावस्या को) संझा देवी को विदा किया जाता है।
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घर के बाहर, दरवाजे पर दीवारों पर गाय का गोबर लेकर लड़कियां विभिन्न कलाकृतियाँ बनाती हैं। संझा देवी, उसकी बहन फूहङ और खोङा काना बामन के नाम की मुख्य आकृतियां बनाई जाती हैं। उन्हें हार, चूङियां, फूल पत्तों, मालीपन्ना सिन्दूर व रंग बिरंगे कपड़ों आदि से सजाया जाता है।
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नियमित रूप से एकत्रित होकर संध्या समय उनका पूजन किया जाता है। घी का दिया जलाया जाता है। फिर देवी को गीत "संझा माई जीमले,ना धापी तो ओर ले,धाप गी तो छोङ दे" गाकर मीठे का भोग लगाते है एवं उपस्थित सभी को प्रसाद वितरित करते हैं। उसके बाद लोकगीत गाते है बाजे बजाते है और सभी खूब नाचते है।
संझा के ओरे धोरे फूल रही चौलाई, मै तन्नै बूझू री संझा कैक तेरे भाई,
फेर संझा बतावैगी,"पांच-पच्चीस भतीजा, नौ दस भाई, भाईयारो ब्याह करो भतीजा री सगाई"।
सोलहवें दिन अमावस्या को संझा देवी को दीवार से उतारकर मिट्टी के घड़े में बिठाया जाता है। उसके आगे तेल या घी का दिया जलाते हैं। फिर सभी मिलकर संझा देवी को गीतों के साथ विदा करने जाते हैं। विसर्जन करने जाते समय पूरे रास्ते सावधानी बरती जाती है क्योंकि रिवाज है कि नटखट लड़के घड़े को फोड़ने का प्रयास करते रहेंगे, लेकिन सभी लड़कियों को विसर्जन करने तक घड़े की रक्षा करनी होती है। पूरे रास्ते भर हंसी-ठिठोली, नाच, गीत किया जाता है। संझा माई को विदा करने के बाद प्रसाद बांटा जाता है।