Ganesh Ji Karava Chauth Katha - जेष्ठ मास की कथा (जून)- गणेश जी की कथा
Ganesh ji ki kahani - Badi bahu ka vivah yogya ek ladka tha. Ganesh ji ne aprasann ho kar use chura liya. Ghar me udasi cha gyi badi bahu ne saas se prarthna ki maaji, yadi aap agya de to mein Ganesh Chouth ka vrat kar lu.
कथा उस समय की है जब प्राचीन काल में पूच्ची पर राजा पृथ राज्य करते थे। पृथ के राज्य में जयदेव नामक एक ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण के चार पुत्र थे। चारों का विवाह हो चुका था। बड़ी पुत्रवधू गणेश चौथ का व्रत करना चाहती थी उसने इसके लिए अपनी सास से आज्ञा मांगी तो सास ने इन्कार कर दिया। जब जब भी बहू ने अपनी इच्छा अपनी सास के आगे निवेदन की, सास ने अस्वीकार कर दिया।
वह परेशान रहने लगी वह मन-ही मन अपनी व्यथा गणेश जी को सुनाने लगी।
बड़ी बहू का विवाह योग्य एक लड़का था। गणेश जी ने अप्रसन्न होकर उसे चुरा लिया। घर में उदासी छा गई बड़ी बहू ने सास से प्रार्थना की-"मांजी, यदि आप आज्ञा दे दें तो मैं गणेश चौथ का व्रत कर लूं। हो सकता है, वे प्रसन्न होकर हम पर कृपा कर दें और मेरा बेटा मिल जाए।"
बुजुर्गों का पोते-पोती पर स्नेह तो रहता ही है, अत: उसने आज्ञा दे दी। बहु ने गणेशजी का व्रत किया। इससे प्रसन्न होकर गणेशजी ने दुबले-पतले ब्राह्मण का रूप बनाया और जय देव के घर आ गये। सास और बहू ने बड़ी श्रद्धा और प्रेम के साथ उन्हें भोजन कराया।
गणेशजी ने तो उन पर कृपा करने के लिए ही ब्राह्मण का वेष बनाया था, उनके आशीर्वाद से बड़ी बहु का पुत्र घर लौट आया।