Lord Kartikeya birth Story - कार्तिकेय के जन्म की कथा
According to Skanda Purana, the unrighteous demon Tarakasur had become very powerful due to the boon given by Lord Shiva. According to the boon, only Shivaputra could kill him. Due to the upbringing by the Kritikas, the boy's name was Kartikeya.
स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव के दिये वरदान के कारण अधर्मी राक्षस तारकासुर अत्यंत शक्तिशाली हो चुका था। वरदान के अनुसार केवल शिवपुत्र ही उसका वध कर सकता था। और इसी कारण वह तीनों लोकों में हाहाकार मचा रहा था। इसीलिए सारे देवता भगवान विष्णु के पास जा पहुँचे। भगवान विष्णु ने उन्हें सुझाव दिया की वे कैलाश जाकर भगवान शिव से पुत्र उत्पन्न करने की विनती करें। विष्णु की बात सुनकर समस्त देवगण जब कैलाश पहुंचे तब उन्हें पता चला कि शिवजी और माता पार्वती तो विवाह के पश्चात से ही देवदारु वन में एकांतवास के लिए जा चुके हैं। विवश व निराश देवता जब देवदारु वन जा पहुंचे तब उन्हें पता चला की शिवजी और माता पार्वती वन में एक गुफा में निवास कर रहे हैं, और भगवान शिव और माता पार्वती की शक्ति जन्म लेने वाली हैं।
तब अग्निदेव ने उस अमोघ वीर्य को कबूतर का रूप धारण करके ग्रहण कर लिया व तारकासुर से बचाने के लिए उसे लेकर जाने लगे। किंतु उस वीर्य का ताप इतना अधिक था की अग्निदेव से भी सहन नहीं हुआ। इस कारण उन्होने उस अमोघ वीर्य को गंगादेवी को सौंप दिया। जब देवी गंगा उस दिव्य अंश को लेकर जाने लगी तब उसकी शक्ति से गंगा का पानी उबलने लगा। भयभीत गंगादेवी ने उस दिव्य अंश को शरवण वन में लाकर स्थापित कर दिया किंतु गंगाजल में बहते बहते वह दिव्य अंश छह भागों में विभाजित हो गया था। भगवान शिव के शरीर से उत्पन्न वीर्य के उन दिव्य अंशों से छह सुंदर व सुकोमल शिशुओं का जन्म हुआ। उस वन में विहार करती छह कृतिका कन्याओं की दृष्टि जब उन बालकों पर पडी तब उनके मन में उन बालकों के प्रति मातृत्व भाव जागा। और वो सब उन बालकों को लेकर उनको अपना स्तनपान कराने लगी। उसके पश्चात वे सब उन बालकोँ को लेकर कृतिकालोक चली गई व उनका पालन पोषण करने लगीं। जब इन सबके बारे में नारद जी ने शिव पार्वती को बताया तब वे दोनों अपने पुत्र से मिलने के लिए व्याकुल हो उठे, व कृतिकालोक चल पड़े। जब माँ पार्वती ने अपने छह पुत्रों को देखा तब वो मातृत्व भाव से भावुक हो उठी, और उन्होने उन बालकों को इतने ज़ोर से गले लगा लिया की वे छह शिशु एक ही शिशु बन गए जिसके छह शीश थे। तत्पश्चात शिव पार्वती ने कृतिकाओं को सारी कहानी सुनाई और अपने पुत्र को लेकर कैलाश वापस आ गए। कृतिकाओं के द्वारा लालन पालन होने के कारण उस बालक का नाम कार्तिकेय पड़ गया। कार्तिकेय ने बड़ा होकर राक्षस तारकासुर का संहार किया।
दक्षिण भारत में कार्तिकेय का आगमन
प्राचीन ग्रंथो के अनुसार एक बार ऋषि नारद मुनि एक फल लेकर कैलाश गए दोनों गणेश और कार्तिकेय मे फल को लेकर बहस हुई जिस कारण प्रतियोगिता (पृथ्वी के तीन चक्कर लगाने) आयोजित की गयी जिस अनुसार विजेता को फल मिलेगा । जहां मुरूगन ने अपने वाहन मयूर से यात्रा शुरू की वहीं गणेश जी ने अपने माँ और पिता के चक्कर लगाकर फल खा लिया जिस पर मुरूगन क्रोदित होकर कैलाश से दक्षिण भारत की ओर चले गए।
पिता - भगवान शिव
माता - भगवती पार्वती
भाई - गणेश (छोटे भाई)
बहन - अशोकसुन्दरी (छोटी बहन)
पत्नी - देवसेना एवं वल्ली
वाहन - मोर