Hare ka sahara Baba Shyam Humara - हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा

Hare ka sahara Baba Shyam Humara, Khatu Shyam ji's real name was Barbaric. Lord Krishna give him one of his name which was Shyam

Hare ka sahara Baba Shyam Humara

हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा

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हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा 'श्रीश्याम दातार' श्रीश्याम धणी की जय बोलो जय श्री श्याम बाबा ।
जय श्रीश्याम दोहा गजानन्द का ध्यान धर गौरीपति मनाय श्यामधणी का यह चरित्र लिखा है ध्यान लगाय ॥

दोहा कलियुग के हैं देव प्रथम जो देते हैं फल चार ।
इसीलिए कलि में उन्हें भजते हैं नर नार ॥

बोल "क्या वर्णन करूँ महिमा इनकी ये देव बड़ा ही निराला है।
जो शरण में इनकी आ पहुँचा उसे सर्व सुखी कर डाला है॥

जो दामन इनका थाम लेवे उसके कष्ट सभी कट जाते हैं।
संकट में अगर पड़ जाए भक्त तो ये आकर उसे छुड़ाते हैं।
ये कथा बहुत पुरानी है द्वापर का अंतिम पसारा था।
उस मायापति की माया में कलियुग का शुरू नज़ारा था।
महाभारत के युद्ध की एक गाथा तुम्हें सुनानी है।
इन श्यामधणी के महादान की यह एक छुपी निशानी है ॥

सब समय-समय का चक्कर है बिन समय न कुछ हो पाता है।
जब समय पलट जाता है नर का तब क्या से क्या हो जाता है।
थे कौरव पाण्डव भाई-भाई पर भाई-चारा रहा नहीं।
आपस की खेंचा तानी में कुछ कुल में बाकी रहा नहीं।
थे धर्म युधिष्ठिर उस कुल में पर धर्म-धर्म से पला नहीं ।
पापी दुर्योधन के आगे कुछ चारा उनका चला नहीं ।
संकल्प था दुर्योधन का जीते जी इन्हें मिटा दूँगा|
मिट जाए चाहे संसार सभी पर नामोनिशान मिटा दूँगा।
एक रोज़ छली दुर्योधन ने एक सुंदर खेल रचा डाला।
उस खेल खेल में पापी ने विष भीम बली को दे डाला ॥

मूर्छित हो गया जब भीम बली दरिया में उठाकर डाल दिया।
मानो दुर्योधन ने ऐसे जीवन का काँटा निकाल दिया।
ऐसी हालत में भीम जिस समय नागलोक में जा पहुँचा है।
वासुकी नाग की कन्या का मानो सुहाग आ पहुँचा है।
वासुकी नाग को एक समय माँ पार्वती ने वचन दिया।
होवे कन्या उत्पन्न तेरे ऐसा सुंदर आशीर्वाद दिया ||

यह कन्या वही अहलवती थी जो माँ की भी वरदानी थी।
शिव की पूजा नित करती थी सतवंती थी गुण खानी थी।

शिव के पूजन में एक रोज ये ताज़े फूल न चढ़ा सकी।
माता पार्वती भी अपने कुछ मन के भाव न छुपा सकी ॥

माँ पार्वती ने क्रोधित हो उस कन्या को शाप दिया। मुर्झाये पुष्प चढ़ाकर के पति का मेरे अपमान किया॥

ये शाप तुझे मैं देती हूँ इस करनी का फल पाएगी। मूर्छित फूलों के बदले में मूर्छित सुहाग ही पाएगी। अहलवती बोली माता सब जप-तप नष्ट हो जाएगा। गर उजड़ गया जो सुहाग मेरा तो जन्म भ्रष्ट हो जाएगा। अपराध हुआ मुझसे माता वरदान दूसरा दे डालो। सुख से भर दो झोली मेरी या जीवन मेरा ले डालो । बल बुद्धि में होगा अपार उसे जीत न कोई पाएगा। ये पुरुष वही था भीम जिसे वहाँ मूर्छापन में पाया है। वासुकी नाग की कन्या ने झट अमृत इन्हें पिलाया है । फिर नारद मुनि की आज्ञा से दोनों का हुआ विवाह वहाँ। इसी तरह से भीम बली कुछ करते रहे विहार वहाँ ॥

जब आई सुधि भ्राताओं की बोले अब चला मैं जाऊँगा। ये वचन अहलवती देता हूँ जब चाहोगी आ जाऊँगा । भीम के यहाँ आ जाने से खुशी पाण्डव कुल में भारी थी। यह वही समय आ पहुँचा था जब महाभारत की तैयारी थी । उधर अहलवती के द्वारा एक सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ। मानो था वो भी महाबली जीवन से सुख सम्पन्न हुआ। बर्बरीक नाम रक्खा उसका और महा तेज भी पाया है। यह वही नाम और वही बली जो श्यामधणी कहलाया है । भिड़ पड़े कौरव पाण्डव दोनों आपस में युद्ध घमासान ठना । वो पावन धाम कुरुक्षेत्र जो मानो आज शमशान बना ॥

ये युद्ध महान भयंकर था जो नहीं भुलाने वाला था। मर मिटे कौरव पाण्डव दोनों कुछ साथ न जाने वाला था ॥

बालक बर्बरीक भी माता से ले विदा युद्ध में आया है। उस महाप्रलय में लड़ने को बस तीन बाण ही लाया है ॥

भगवान कृष्ण ने देखा कि बर्बरीक युद्ध में आया है। डट गया अगर ये युद्ध में तो मानो त्रिलोकी का हुआ सफाया है। ये पक्ष भी लेगा उस दल का जो हार मानने वाला है। इसकी ताकत से फिर दल को यहाँ कौन बचाने वाला है। यही सोचकर मायापति मन में अनुमान लगाने लगे। उस वीर बर्बरीक बालक पर माया के फंदे चलाने लगे। भगवान कृष्ण ब्राह्मण बनकर जब सामने उसके आए हैं। बालक की अनूठी देख छवि प्रभु मन ही मन मुस्काए हैं। भगवान ने पूछा जब उससे तो हाल सभी बतलाया है। उस युद्ध में मैं भी भाग लूँगा ये निश्चय मैंने ठहराया है। उस तरफ लड़ें मैं निश्चय ही जो पक्ष हारने वाला हो। अरमान करूँ पूरे उससे जो उन्हें मारने वाला हो ॥

है आन मुझे इष्ट की मेरे जीते जी न बाजी हारूँगा। बस इन्हीं तीन बाणों द्वारा त्रिभुवन को मैं संहारूँगा | है आशीर्वाद माँ का मुझको जीवन बलिदान चढ़ा दूंगा। निर्बल पक्ष की विजय हेतु त्रिलोकी आज हिला दूंगा ॥

भगवान कृष्ण ने सोचा गर ये वीर युद्ध में डट जाए। तो एक अर्जुन भीम की तो ताकत क्या मेरा भी चक्र पलट जाए ॥

तुम दानी कितने हो देखें ये इच्छा हुई हमारी है । ये सुनकर बर्बरीक बोले मँगते की सब इच्छा भर दूँ। जो अगर जरूरत पड़ जाए तो शीश तार अर्पण कर दूँ ॥

भगवान ने वो ही माँग लिया और तुरंत शीश दे डाला है। ये महिमा महादानी की है जो सर्वस्व भी दे डाला है ॥

पर उस योद्धा ने माँगा था ये जो माँगोगे दे जाऊँगा। दे दो एक वचन मुझको कि ये युद्ध देख मैं पाऊँगा । इसलिए शीश को लेकर के प्रभु ने ऐसा विधान किया। उस कटे शीश को युद्ध स्थल में एक खम्बे पर स्थान दिया । जब महाभारत के युद्ध में मिट गए सभी कौरव लड़कर। मिल गई विजय जब पाण्डवों को करते थे बातें बढ़-चढ़कर ॥

जब बोले कृष्ण भगवान स्वयं ये युद्ध किसी ने किया नहीं। तब फैसला दिया शीश ने ये जो देखा सो बतलाते थे। इस कुरुक्षेत्र की भूमि में मायापति ही दरसाते थे ॥

भगवान कृष्ण की महिमा से पाण्डव गण का जयकार हुआ। काली खप्पर वाली द्वारा सब दुष्टों का संहार हुआ। भ्रम दूर हुआ पाण्डव गण का भगवान श्रीकृष्ण मुस्काते हैं। उस कटे शीश की ओर देख मोहन बलिहारी जाते हैं। फिर आशीर्वाद दिया प्रभु ने हाथ उठा प्रसन्न होकर। कलियुग में पूजे जाओगे तुम कुल देवता होकर ॥

ये आशीर्वाद हमारा है जो नाम तुम्हारा गाएगा। बिगड़े कार्य बनेंगे उसके मन वांछित फल पा जाएगा। ये वही श्याम दातार हैं जिन्होंने शीश वहाँ दे डाला है। जो शरण गया है उनकी उसका सब दुःख हर डाला है।
जो इनका ध्यान करे कलि में जीवन उसका बन जाएगा। श्रोताओं अब भी चूक गए तो ये समय हाथ नहीं आएगा ॥

'श्याम' जिंदगी थोड़ी है और झूठा सभी झमेला है। इस चला चली की दुनिया में बस चार दिनों का मेला है ॥

सुमरिन कर श्याम दातार का मन को लगा ले तू। उनसे नाता जोड़कर बिगड़ी हुई किस्मत बना ले तू ॥

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