Nirjala Ekadashi Vrat Katha - निर्जला एकादशी व्रत कथा

Drinking water on this Ekadashi is strictly prohibited that's why ekadashi is called Nirjala Ekadashi. Nirjala Ekadashi is also known by Bhimseni Ekadashi

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निर्जला एकादशी व्रत कथा का पाठ करें

Wed, Feb 28, 2024
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निर्जला एकादशी व्रत की कथा

इस एकादशी पर पानी पीना सख्त मना है इसलिए एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है निर्जला एकादशी के एक एपिसोड को महाभारत में पांडवों के भाई भीम के साथ जुड़े होने के कारण भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। प्रत्येक माह में दो एकादशी व्रत होते हैं। यह पूर्णिमा से पहले की एकादशी है। जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है वह अगले दिन सूर्योदय से सूर्योदय तक जल नहीं पीता। कहा जाता है कि पानी पीने से व्रत टूट जाता है।

एक बार भीमसेन व्यास जी से कहने लगे कि हे पिता! भाई युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सभी एकादशी का व्रत करने के लिए कहते हैं, लेकिन महाराज, मैं भगवान की भक्ति, पूजा आदि कर सकता हूं, दान भी कर सकता हूं लेकिन भोजन के बिना नहीं रह सकता।

इस पर व्यासजी बोले: हे भीमसेन! यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रत्येकमास की दोनों एकादशियों को अन्न मत खाया करो। इस पर भीम बोले हे पितामह! मैं तो पहले ही कह चुका हूं कि मैं भूख सहन नहीं कर सकता। यदि वर्षभर में कोई एक ही व्रत हो तो वह मैं रख सकता हूं, क्योंकि मेरे पेट में वृक नामक अग्नि है जिसके कारण मैं भोजन किए बिना नहीं रह सकता। भोजन करने से वह शांत रहती है, इसलिए पूरा उपवास तो क्या मेरे लिए एक समय भी बिना भोजन के रहना कठिन है।

निर्जला एकादशी व्रत के लाभ

अत: आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जो वर्ष में केवल एक बार ही करना पड़े और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए। इस पर श्री व्यासजी विचार कर कहने लगे कि हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एकादशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है।

ऐसा सुनकर भीमसेन घबराकर कांपने लगे और व्यासजी से कोई दूसरा उपाय बताने की विनती करने लगे। कहते हैं कि ऐसा सुनकर व्यासजी कहने लगे कि वृषभ और मिथुन की संक्रांति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है। इस एकादशी में अन्न तो दूर जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। तुम उस एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल का प्रयोग वर्जित है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए और न ही जल ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत टूट जाता है। इस एकादशी में सूर्योदय से शुरू होकर द्वादशी के सूर्योदय तक व्रत रखा जाता है। यानी व्रत के अगले दिन पूजा करने के बाद व्रत का पालन करना चाहिए।

व्यासजी ने भीम को बताया कि इस व्रत के बारे में स्वयं भगवान ने बताया था। यह व्रत सभी पुण्य कर्मों और दान से बढ़कर है। इस व्रत मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।

निर्जला एकादशी व्रत विधि

निर्जला एकादशी का व्रत एक दिन पहले यानी दशमी तिथि की रात से शुरू हो जाता है. रात से ही खाना-पानी नहीं लिया जाता। निर्जला एकादशी के व्रत में द्वादशी के अगले दिन सूर्योदय से सूर्योदय तक जल और भोजन नहीं किया जाता है। निर्जला एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर घर की साफ-सफाई कर उसके बाद स्नान करें। नहाते समय गंगाजल में थोड़ा सा गंगाजल मिला लें। स्नान के बाद स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें और पीले चंदन, पीले फल और फूलों से भगवान विष्णु की पूजा करें और भगवान विष्णु को पीली मिठाई का भोग लगाएं। आसन पर बैठकर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का 108 बार जाप करें। भगवान विष्णु को आम का फल चढ़ाएं।

Nirjala Ekadashi Vrat ki Katha

Drinking water on Ekadashi is strictly prohibited. This is the reason that Ekadashi is called Nirjala Ekadashi. One of the episodes of Nirjala Ekadashi is also known as Bhimseni Ekadashi due to its association with Bhima, the brother of the Pandavas in the Mahabharata. There are two Ekadashi fasts in every month. This is the Ekadashi before the full moon. One who observes a fast on this day does not drink water from sunrise to sunrise the next day. It is said that drinking water breaks the fast.

Once Bhimsen started saying to Vyas ji that O father! Brother Yudhishthira, Mother Kunti, Draupadi, Arjuna, Nakula and Sahadeva etc. all ask to observe fast on Ekadashi, but Maharaj, I can do devotion, worship etc. to God, I can also give charity but cannot live without food.

On this Vyasji said: O Bhimsen! If you consider hell to be bad and heaven to be good, then do not eat food on both the Ekadashis of each month. On this Bhima said, O father! I have already said that I cannot bear hunger. If there is only one fast in a year, then I can keep it, because there is a fire called Vrika in my stomach, due to which I cannot live without eating. Eating food keeps her calm, so is it difficult for me to stay without food even for a single time if the complete fast is there.

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